सिद्धान्तानाम् अवबोधने न्यायानाम् उपयोगिता विषये वेबिनार् 17 फेब्रुवरी
सिद्धान्तानाम् अवबोधने न्यायानाम् उपयोगिता विषये वेबिनार् 17 फेब्रुवरी
माननीय महोदय/महोदया,
नमस्कार! सुरम्य सौराष्ट्र प्रदेश में स्थित श्रीसोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत शास्त्रों एवं भाषा के पठन-पाठन हेतु सन् २००६ से निरन्तर कार्यरत है। शास्त्रों में उत्कृष्ट संशोधन को प्रोत्साहित करने हेतु विश्वविद्यालय समय-समय पर भारत के मूर्धन्य विद्वानों को आमन्त्रित कर परिसंवादों एवं संगोष्ठीओं का आयोजन करता रहता है।
वैश्विक महामारी के चलते विश्वविद्यालय संचालित संस्कृत महाविद्यालय, अनुस्नातक विभाग एवं IQAC के संयुक्त उपक्रम से दिनांक १७.०२.२०२१ को “सिद्धान्तानाम् अवबोधने न्यायानाम् उपयोगिता” विषय पर एक राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया जा रहा है।
संस्कृतवाङ्मय में न्यायशब्द विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है। यद्यपि न्यायशब्द से तर्कशास्त्र का ग्रहण किया जाता है तथापि लौकिक व्यवहार, अनुभव अथवा किसी घटना, प्रसंग आदि से प्राप्त वाक्यों में भी न्याय शब्द का प्रयोग प्राप्त होता है। लोक व्यवहार के आधार पर प्रयुक्त न्याय विभिन्न प्रकार के स्वभाव, आचरण, प्रवृत्ति को द्योतित करते हैं। इसी न्याय का विस्तार लोकोक्ति, किंवदन्ती, सार्वभौम नियम, सुभाषित इत्यादि के रूप में प्रसरित हुआ है। उक्त अर्थ में प्रयुक्त न्याय शब्द को अंग्रेजी में maxim, adage के द्वारा कहा जाता है। इन न्यायों के द्वारा शास्त्र में प्रतिपादित जटिल विषयों का भी सहजतया बोध होता है। जैसे सूत्र अल्पाक्षर होते हुए भी असन्दिग्ध अर्थ का बोध करवाने में समर्थ होता है, वैसे ही ये न्याय भी अल्पाक्षर होते हुए दुरूह शास्त्रीय विषयों का सटीक बोध करवाने में समर्थ होते हैं। जैसे स्थालीपुलाक न्याय, पङ्ग्वन्ध न्याय, कण्ठचामीकर न्याय, वीची-तरङ्ग न्याय, अरुन्धती न्याय, काकदन्तन्याय, अन्धगोलाङ्गूल न्याय इत्यादि। संस्कृतवाङ्मय में निहित विभिन्न न्यायों के इसी आयाम के बारे में और गहराई से जानने हेतु यह वेबिनार आयोजित किया जा रहा है।
दिङ्निर्देशार्थ इसमें प्रस्तोतव्य विषय निम्नलिखित हो सकते हैं –
· न्यायों का उद्भव और विकास
· न्यायों का स्रोत एवं स्वरूप
· न्याय शब्द का विभिन्न दर्शनों में प्रयोग
· लौकिक और शास्त्रीय न्यायों का स्वरूप
· वैदिक वाङ्मय में न्यायों का प्रयोग
· विविध शास्त्रों में प्रयुक्त न्यायों का सन्दर्भ पूर्वक विश्लेषण
· दर्शन वाङ्मय में न्यायों का प्रयोग
· न्यायों में प्रदर्शित दृष्टान्तों का स्वरूप
· न्यायों के प्रयोग की आवश्यकता
· न्यायों पर आश्रित ग्रन्थ
· प्रादेशिक भाषाओं में न्यायों का स्वरूप एवं प्रयोग
मुख्य विषय से सम्बद्ध अन्य विषयों में भी पत्र प्रस्तिति की जा सकती है।
सूचना –
· इस वेबिनार में प्रतिभागी के रूप में शोध छात्र एवं प्राध्यापक भाग ग्रहण कर सकते हैं।
· इस वेबिनार में अपना शोध पत्र प्रस्तुत करने के इच्छुक विद्वानों से निवेदन है, कि वे १४.०२.२०२१ तक निम्नलिखित गूगल लिंक पर अपना सामान्य विवरण देकर अपना पंजीकरण करेः –
https://forms.gle/gcm2PNSWeBfVsEuo8
· पंजीकरण पत्र में अपने शोध पत्र का विषय तथा अतिसंक्षिप्त सार (१०० शब्दों में) भी प्रस्तुत करना होगा।
· इस वेबिनार में पंजीकरण निःशुल्क है।
· गूगल लिंक पर पंजीकरण मात्र करने से वेबिनार में पंजीकरण सुनिश्चित नहीं होगा। आप के शोध का विषय एवं शोधसार की प्रस्तुति के आधार पर वेबिनार के संयोजक आप को अपने पंजीकरण की सुनिश्चिति का ई-मेल भेजेंगे। इस ईमेल को पाने से ही आप का पंजीकरण सुनिश्चित होगा।
· वेबिनार ‘वेबेक्स’ (Cisco Webex) एप्लिकेशन द्वारा चलेगा। आपके ई-मेल में वेबिनार में जुडने हेतु लिंक भी भेजा जाएगा।
· इस वेबिनार में प्रस्तुत होने वाले शोध पत्र E-ISBN से युक्त ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित किए जाएँगे।
· शोध पत्र प्रस्तोताओं को ई-मेल द्वारा ई-प्रमाण पत्र भी भेजा जएगा।
· शोध पत्र की प्रस्तुति संस्कृत/अंग्रेजी/हिन्दी में की जा सकती है।
· प्रतिभागियों को वेबिनार से पूर्व अपना सम्पूर्ण शोध पत्र darshana.sssu@gmail.com पर युनिकोड में टाईप कर के भेजना अनिवार्य है।
· देवनागरी में लिखे हुए शोध पत्रों को एरियल युनिकोड (फोंट साईज १२) में तथा अंग्रेजी में लिखे हुए पत्रों को टाईम्स न्यू रोमन (फोंट साईज १२) में टाईप करना होगा।
· इस वेबिनार संबंधित से अधिक जानकारी के लिए संयोजकों का सम्पर्क यहाँ किया जा सकता है –
डॉ. बी. उमा महेश्वरी – ६३५४८७८९७२
डॉ. जानकीशरण आचार्य – ८७५८८१७५२५
श्रीसोमनाथ-संस्कृत-युनिवर्सिटी
राजेन्द्र भुवन मार्ग, वेरावल-३६२२६६(गुजरात)
Website: www.sssu.ac.in Email : darshana.sssu@gmail.com